- Shwetabh Pathak ( श्वेताभ पाठक )kavita

कैसे जाऊँ झीलों के उस पार- Shwetabh Pathak ( श्वेताभ पाठक )

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कैसे जाऊँ झीलों के उस पार ?
माँझी रूठा , नौका टूटी , टूटी है पतवार ।
गहरा पानी , दूर किनारा , दिखता है अँधियार ।
थका हुआ तन , हारा है मन , सब विधि हूँ लाचार ।
गरज बरस कर , घोर घटा घन, भरता है हुंकार ।
उठा प्रभंजन , दिशा है धूमिल , करता हूँ चीत्कार ।
जग आकर्षण , विविध व्याधि को , देता है विस्तार ।
इकला पथ में , साथ न जग अब , संग न नातेदार ।
एक आसरा , तुम ही हो अब , मेरे पालनहार ।
ह्रदय लगाकर , हाथ थाम लो , मेरी यही पुकार ।
तन में मन में , अक्षुण शक्ति का , कर दो अब संचार ।
नाम कृपा का , काम कृपा का , तुम तो कृपावतार ।
सुनो विनय , इस दीन श्वेत की , कर दो श्वेताचार ।

– Shwetabh Pathak ( श्वेताभ पाठक )

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