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क्या मार्ट्स ,माल या स्टोरों के कर्मचारियों के साथ कंपनियों को दयालु भावना नहीं रखनी चाहिए?

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जब भी इस तरीके के मार्ट्स ,माल या स्टोरों में जाता हूँ तो सदैव मन मे एक भारीपन लेकर लौटता हूँ ! ऐसे स्टोरों ने युवाओं को रोजगार दिया है,वही उन्ही युवाओं, अक्सर उम्रदराज,अधेड़ सेल्समैनों और युवतियों के शारीरिक कष्ट को देख द्रवित हो जाता हूँ !
दस से लेकर बारह घण्टे तक इन सेल्समैनों से ड्यूटी ली जाती है तनख्वाह बमुश्किल 10-12000/-….. खास बात यह है कि इन मजबूर अर्धरोज़गार पाए लोगों को बैठने की अनुमति नहीं होती…. बल्कि वहां जानबूझकर कोई चेयर…स्टूल रखने का प्रोवीजन ही नहीं रक्खा जाता….
लगातार.. 10-11 घण्टे….चलते…. खड़े…. कम्प्यूटर पर खड़े होकर बिलिंग करते… इन युवाओं को देख कर कष्ट और बढ़ जाता है जो कभी क्षणिक आराम के लिए एक पैर मोड कर खड़े होते हैं और फिर थोड़ी देर बाद दूसरा पैर मोड़ कर थकान को मिटाने का प्रयास करते हैं ! कस्टमर के लिए भी कोई कुर्सी नहीं होती… जबकि अनेक उम्रदराज भी होते हैं ! लेकिन हम स्टोर में 20-30 मिनट से ज़्यादा नहीं रहते !
स्टाफ छोड़िये…. सिक्युरिटी गार्ड भी एक सेकेंड को बैठ नहीं सकता ! यह कौन सा कानून है ? इस पर आज तक किसी ने बात क्यों नहीं की ?
कल रात इसी रिलायंस के इसी ई स्टोर के कम्प्लेंट/सजेशन बुक में इसी शोषण को लेकर…. शिकायत दर्ज कराई तो वहां खड़े सेल्समैन ने मुस्करा कर धन्यवाद दिया….. आप भी वहां उपलब्ध शिकायत-पुस्तिका में शिकायत दर्ज कराएं… परिवर्तन आएगा… 🙏

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