बुंदेलखंड के झांसी में इस जगह पर है 500 साल से पुराना कुत्तिया महारानी का मंदिर

जैसा कि आप सभी जानते हैं भारत मंदिरों की भूमि कही जाती है यहां कण-कण में ईश्वर माना जाता है पत्ते पत्ते में ईश्वर माना जाता है सनातन धर्म में प्रकृति को भी पूजा जाता है ईश्वर का दर्जा दिया जाता है ऐसा ही मामला बुंदेलखंड के झांसी जिले में देखने को मिला है हम बात कर रहे हैं झांसी के मऊरानीपुर तहसील के रेवन और ककवारा के बीच बने गांव के बारे में यही 500 साल से भी ज्यादा पुराना मंदिर बना हुआ है जिसमें की एक कुत्तिया की स्थापना की गई है अब आपके मन में ख्याल आ रहा होगा कि आखिर कुत्तिया का मंदिर क्यों मनाया गया तो आपको बता दें रिबन और ककवारा के बीच में एक कुत्तिया रहती थी जो कि कभी रेवन और कभी ककवारा भोजन खाने जाया करती थी जैसे ही उसे पता लगता कि कहीं कोई समारोह हो रहा है पर पहुंच जाया करती थी ऐसे ही एक बार रेवन और ककवारा गांव में एक गांव में भंडारा और एक गांव में त्रयोदशी हो रही थी तो कुत्तिया महारानी के मन में ख्याल आया क्यों ना पहले भंडारा खा लिया जाए लेकिन जब भंडारे में पहुंची तो भंडारा खत्म हो गया था उसके बाद वह लौट के उस गांव में गई जिस गांव में त्रयोदशी हो रही थी जब वह त्रयोदशी में पहुंची तब वह भी खत्म हो गई इस वजह से उसे दोनों जगह खाना नहीं मिला और वह भूख लगने की वजह से खत्म हो गई उसके कुछ समय बाद उस गांव की नई को सपना आया जिसमें उसे बताया गया कि उस कुत्तिया का मंदिर बनाया जाए तब ग्रामीणों ने मिलकर मंदिर बनाया और उस कुत्तिया की स्थापना वहां की तब से लेकर आज तक वहां उसकी पूजा की जाती है और शादी होने के बाद सबसे पहले दूल्हा दुल्हन वहां हाथ लगाने भी आते है उस मंदिर में प्रसाद के रूप में नारियल इलायची दाने आदि चढ़ाए जाते हैं।